मातृछायाअनाथाश्रम,बिलासपुर सेवा भारती, छत्तीसगढ़
मातृछाया अनाथाश्रम कें बच्चें काकू चाची के आने की आहट पाते ही खुशी��से उमड पडते है। काकू है, सुनंदा वैशंपायन
सामान्य सी दिखनेंवाली महिला उनकी आँखे कुछ कमजोर है, चश्मे के बिना वे ठीक देख नहीं पाती। चेहरे पर झुरियाँ�पड चुकी�हैं। उनकी कोई संतान नहीं�हैं। लंकिन मातृछाया अनाथ श्रम के22 बच्चें उन्हें मां के समान प्यार और आदर देते हैं। यहां के हर बच्चों�को उनके आँचल में माँ की ममता मिलती है। आज ये बच्चें ही उनका जीवन बन चुके हैं।
काकू के आश्रम में आते ही बच्चें उनकी ओर दौडृ पडते है। कोई उनके पास बैठने चाहता है कोई उनसे बात करना चाहता है तो कोई उन्हें स्पर्श�करना चाहता है। इस सारी धांधली�में भी कुछ बच्चें काकू की नजरों से ओझल रही जाते हैं।फिर ये बच्चें कुछ शरारत करते हैं। काकू की स्नेहिल डांट पडते ही उनके चेहरे पर खीली मुस्कान सालगता है कि शायदउनकी शरारत काकू का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की चेष्ठा थी।
मातृछाया के बच्चों ने उनका जीवन आनंद से भर दिया है। वे कहती हैं बच्चों से ना मिलूं तो दिन अधूरा सा लगता है कहीं मन नहीं लगता । यही ख्याल आता है कि�आज बच्चें कैसे होंगे?
बच्चें ना होते तो.......... ये बच्चें ना होते तो.............काकू इस प्रश्न�की तो आज कल्पना भी नहीं कर सकती । वे बताती हैं हम 1962 में बनारस से बिलासपुर आए। सेवाभारती के कोषाध्यक्ष का घर किराये पर लिया, संतान न होने का दुःख तो था ही, लेकिन इस कुण्ठा के साथ जिया भी तो नही जा सकता था सन2000 हम सेवा भारती से जुड गये बाद में इस संस्था ने मातृछाया अनाथश्रम की स्थापना। की और तब से इनबच्चों के साथ जुड गई। इन बच्चों की मुस्कान कायम रखने के लिये काकू
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